योगी
योगी कहते हैं कि अपनी सामर्थ्य से कम कार्य करना तमोगुणी प्रवृत्ति का प्रतीक है; जबकि इससे अधिक कार्य का दबाव झेलना रजोगुणी प्रवृत्ति कहलाती है। गमोगुणी कार्यं से विमुख हो जाता है, इसके कारण उसे आलस्य और प्रमाद घेर लेते हैं। वह गहरी उदासी में चला जाता है। रजोगुणी कार्य की अधिकता के कारण अत्यधिक सक्रीय हो जाता है। इसे अपने बारे में सोचने-करने का समय ही नहीं मिल पाता है।
Yogis say that doing less than one's capacity is a sign of a tamoguni tendency; While bearing the pressure of work more than this is called Rajoguni tendency. The virtuous person turns away from work, due to this he is surrounded by laziness and indolence. He goes into deep sadness. Due to the excess of Rajoguni work, it becomes very active. He doesn't get time to think about himself.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...