नारी पालनकर्ता ही नहीं संहारक भी है
है भरा मुझमें कितना, रे बल का पारवार नहीं। मुझको अबला कहने का अब कवि को भी अधिकार नहीं।
महाकवि सुमन की उपर्युक्त पंक्तियां नारी की बलदती स्थिति, दृढ़ इच्छा शक्ति एवं विचारों में आए परिवर्तन की ओर संकेत करती हैं। नारी विधाता की सुन्दर, अनुपम कृति है। स्त्री, भामिनि, दुहिता, मानिनी, जाया, वामा, सुन्दरी आदि नारी के अनेक पर्यावाची शब्द हैं। नारी के अभाव में सृष्टि की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। संसार के सभी देशों में नारी को पूज्य माना गया है।
'यत्र नार्यवस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' कहकर वैदिक काल में नारी को विशिष्ट सम्मान दिया गया है। मध्युग में भले ही इस युग में स्थिति में कुछ अन्तर आया हो पर आज फिर नारी अपने लिए सशक्त स्थिति बना पाने में समर्थ हो चुकी है। नारी को अबला समझकर समाज ने उसे अनेक बन्धनों में कैद कर, कितनी ही बाधाओं को सामने रख उसकी मुक्ति के द्वार बंद करने के प्रयास किये किन्तु उसने दासता के बन्धनों को तोड़कर अपने लिए स्वतंत्रता के द्वार खोले, दृढ़ इच्छा शक्ति एवं दृढ़ आत्मविश्वास से समाज में अपना स्थान बनाने के लिये पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया।
Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
वेद कथा -1 | Explanation of Vedas & Dharma | मरने के बाद धर्म ही साथ जाता है।
सत्य ही है:-
नारी अबला नहीं, सबला है वह। बेबस, लाचार, पर-निर्भर थी कभी वह आज आत्मनिर्भर, प्रेरणा का स्त्रोत् है वह।
सत्यं शिवम् सुन्दरम् की प्रतीक स्वरूपा, जन्मदात्री, पालनकर्त्री, समय पड़ने पर संहारक भी है वह। प्राचीन अवधारणाओं को तोड़ती युग की निर्मात्री है वह। नारी के इस बदलते स्वरूप की विकास यात्रा का युग साक्षी है। प्राचीन काल में मैत्रैयी, अनुसूया, तास, कुन्ती, गांधारी न जाने कितनी ही नारियां है जिन पर भारतवासी गर्व करते हैं। मध्युग में रानी लक्ष्मीबाई, चांदबीबी, रानी रूपमती, रानी पद्मावती जैसे वीरांगनाओं ने नारी का सिर ऊंचा किया। वह विडम्बना ही कही जाएगी कि नारी के घर परिवार की चारदीवारी तक अपने को सीमित एवं यातनापूर्ण जीवन भी जिया पर ऐसी स्थिति अधिक समय तक नहीं रही। आज समय बदल चुका है। आज समय बदल चुका है। दासता की बेड़ियां काट कर, भोग की वस्तुमात्र न बन कर आज की नारी दोहरी भूमिका निभा रही है। गृहणी बन जहां अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह कर रही है वही दूसरी ओर राजनीति, फिल्म, कला जगत्, व्यापार, खेल, साहित्य सभी क्षेत्रों में भी उसने अपनी विशिष्ट प्रतिभा का प्रदर्शन किया है, जिसे देखकर पुरुष समाज ने भी दांतों तले उंगली दबाई है। - डॉ. मधु लोमेश
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In ancient times Maitraiyi, Anusuya, Tas, Kunti, Gandhari, there are so many women who are proud of Indians. In the Middle Ages such as Rani Lakshmibai, Chandbibi, Rani Roopmati, Rani Padmavati, the female head was raised. It will be ironically said that the woman lived her limited and tortured life till the boundary of the family, but such a situation did not last long. Today's time has changed. Today's time has changed. Today's woman is playing a dual role by cutting the chains of slavery and not becoming the object of indulgence.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...