श्रद्धांजलि
उपनिषद की इस भुमि में वाणी फिर से गूँजने लगी है, जिन्होंने मानवता के लिए अपना तिल-तिल गला दिया। तुम्हारे अंदर उन्हीं का बीज है। उस बीज को अपने हृदय के रक्त से सींचकर पल्लवित एवं विकसित करो। यह धरा फिर से एक क़ुरबानी माँगती है। क्या तुम अपनी माटी का करज नहीं चुकाओगे। तुम्हारे पूर्वजों ने इसीलिए जन्म लिया था और एकमात्र इसी के लिए मौत को अंगीकार किया। क्या तुम अपने पूर्वजों को सच्ची श्रद्धांजलि देना नहीं चाहते तथा अपने प्राणों से जलाए गए सतयुगी कल्पना के उस अखंड दीप में अपने जीवन के एक अंश का त्याग नहीं कर सकते ?
In this land of Upanishads, the voice has started echoing again, who sacrificed their every mole for humanity. You have his seed inside you. Make that seed flourish and grow by watering it with the blood of your heart. This land again asks for a sacrifice. Will you not repay the debt of your soil? That's why your forefathers were born and accepted death only for this. Don't you want to pay true tribute to your ancestors and sacrifice a part of your life in that eternal lamp of Golden Age imagination kindled by your soul?
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...