संत जॉन
संत जॉन को अवकाश मिलता तभी एकांत कमरे में बैठकर ईश्वरभक्ति और आत्मप्रेरणा वाले गीत गाने बैठ जाते तथा उनमें इतने तलीन हो जाते कि उन्हें सुध-बुध न रहती न रहती। एक मित्र ने पूछा - ''आप किसी और से संगीत सुन सकते हैं, रेडियों बजा सकते हैं। आपको गान नहीं आता तो खुद क्यों गाते हैं ?'' इस पर उन्होंने उत्तर दिया - ''स्वर नहीं तो क्या हुआ, जो आत्मा को प्रकाशित करता है, उस संगीत जैसा आनंद भला दूसरा कौन देगा ?''
When Saint John got a break, he would sit in a secluded room and sing songs of devotion and self-motivation, and would become so engrossed in them that he could not remain alert. A friend asked - "You can listen to someone else's music, play the radio. If you do not know the song, then why do you sing yourself?" To this he replied - "What if there is no voice, which illumines the soul, who else will give joy like that music?"
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...