प्रयोजन
भगवान कह रहे हैं - समय-समय पर जो अवतार हुए हैं, उनमें भी मैं ही आया हूँ और मनुष्यों के रूप में भी मैं ही हूँ। मेरे सिवाय कुछ है ही नहीं। अर्जुन ! मेरी विभूतियों का कोई अंत नहीं है, ये तो संक्षेप में मैंने अपनी विभूतियों को बानगी प्रस्तुत की है। इस संसार में जहाँ कही तुम सौंदर्य देखो, ऐश्वर्य, कांति और शक्ति देखो, यह समझना कि वह मेरे ही अंश में उत्पन्न हुई है। अर्जुन ! बहुत अधिक जानने से तेरा क्या प्रयोजन है, तू तो केवल इतना समझ ले कि इस सम्पूर्ण जगत को मैं अपनी योग माया के एक अंश मात्र से धारण किये हूँ, इसलिए मनुष्य को मेरे को ही तत्व से जानने की कोशिश करनी चाहिए।
God is saying - I have come in the incarnations that have happened from time to time and I am also in the form of human beings. There is nothing except me. Arjun! There is no end to my personalities, in a nutshell I have presented the characteristics of my personalities. Wherever you see beauty, opulence, radiance and power in this world, understand that it has originated in my own part. Arjun! What is the use of you knowing too much, you just understand that I have held this whole world with only a part of my Yog Maya, so man should try to know me from the element.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...