व्यक्तित्व निखार
जीवनसाधक को अपनी प्रत्येक कमी से अवगत होना चाहिए, तभी वह स्वयं को बदल सकता है। व्यक्तित्व निखार तभी आ सकेगा, जब आत्मसमीक्षा निष्पक्ष हो। यदि ऐसा नहीं हो सकेगा तो महानता अपनाने और प्रगति के ऊँचे शिखर तक पहुँचने का अपना ही छोड़ देना चाहिए। जीवनसाधक को सोचना पड़ेगा की क्या मैं ऐसा कर पा रहा हूँ जो आवश्यक है, जो मैं कर रहा हूँ तथा जो हो रहा है क्या वह उपयुक्त हो रहा है क्या वह उपयुक्त हो रहा है ? क्या कभी ऐसा भी सोचा है कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था ?
A life-seeker should be aware of each of his shortcomings, only then he can change himself. Personality can be enhanced only when self-review is fair. If this is not possible, then it should be left to oneself to adopt greatness and reach the high peak of progress. The life seeker has to think whether I am able to do what is necessary, what I am doing and what is happening, is it happening, is it happening right? Have you ever thought that this should not have been done?
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...