संयम और शक्ति
लिया जा रहा भोजन और ग्रहण किया जा रहा आहार इस तरह से हो कि वो शरीर को ऊर्जा एवं निरोगिता; दोनों प्रदान कर सकें। उस उद्देश्य को भूलकर यदि हम मात्र स्वाद की पूर्ति के लिए एवं जीभ की लिप्सा के लिए भोजन को करते हैं तो शारीरिक आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं होती एवं यह शरीर भी बीमारियों का गढ़ बन जाता है। इन दिनों सर्वत्र फैले हुए रोगों व बिमारियों के मूल कारण में जाया जाए तो उनका एक प्रमुख कारण आहार का असंयम कहा जा सकता है। इसीलिए इस वर्ग में आहार का संयम-शक्ति के संरक्षण, संवर्धन व सदुपयोग का एक प्रमुख आधार माना जा सकता है।
The food being taken and the food being consumed should be in such a way that it gives energy and health to the body; can provide both. Forgetting that purpose, if we eat food only for the fulfillment of taste and for the lust of the tongue, then the physical needs are also not fulfilled and this body also becomes a stronghold of diseases. If we go to the root cause of diseases and diseases spreading everywhere these days, then one of their main reasons can be called incontinence of diet. That is why the moderation of diet in this class can be considered as a major basis for the protection, promotion and utilization of power.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...