मौलिक कृति
वह मौलिक कृति क्या है, जो सिर्फ और सिर्फ आपके अंदर से बाहर प्रकट होने के लिए जन्मों से इंतजार कर रही है। इन प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने वाले ही स्वयं में निहित मौलिकता से परिचित हो पाते हैं। वस्तुतः हमारी मुलभुत आवश्यकता हमारे भीतर निहित इसी मौलिकता को पहचानने की है, न कि दूसरों से तुलना करने की या उनकी नकल करने में स्वयं को समय बरबाद; क्योंकि हर इनसान अपने आप में अनूठा है। हर व्यक्ति अपने अनंत जन्मों के संचित विचार, भाव एवं क्रियाओं का समुच्चय है, जो उसे अपनी अंतर्निहित विशिष्ट शक्तियों एवं मौलिक विशेषताओं से संपन्न बनाते हैं, जिन्हें वह अपने पुरुषार्थ के आधार पर परिमार्जित कर सकता है।
What is that original creation, which has been waiting since birth to manifest only and only from within you. Only those who get the answers to these questions get acquainted with the originality inherent in themselves. In fact, our basic need is to recognize the originality that lies within us, not to waste our time comparing or copying others; Because every person is unique in his own way. Every person is a set of accumulated thoughts, feelings and actions of his infinite births, which endow him with his inherent special powers and fundamental characteristics, which he can refine on the basis of his effort.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...