पुरानी दुनिया
पुरानी दुनिया अब टूट रही है। प्रचलित ढर्रे अब बिखरने ही वाले है। युद्धों से, दाँव-पेचों से, अभाव से, दारिद्र्य से, शोषण, उत्पीड़न से, छल-प्रपंचों से आम आदमी ऊब चूका है। सुविधा-साधनों की बढ़ोतरी के साथ दुर्बुद्धि और दुष्प्रवृर्तियों की अभिवृद्धि भी बेहिसाब हो रही है। जो चल रहा है, उसे चलने दिया जाए, तो आज के समय का शोषण कल वीभत्स और नग्न रक्तपात के रूप में सामने आ खड़ा होगा और मानवी सभ्यता बेमौत मर जाएगी। उस स्थिति को बदले बिना और कोई चारा नहीं। नई दुनिया अगर न बनाई जा सकी, तो इस बढ़ती हुई घुटन से मनुष्यता का दम घुट जाएगा।
The old world is now breaking down. The prevailing patterns are about to disintegrate. The common man is fed up with the wars, the tricks, the lack, the poverty, the exploitation, the oppression, the frauds. With the increase of facilities and resources, the growth of ill-intelligence and bad habits is also increasing unaccountably. If what is going on is allowed to go on, then the exploitation of today's time will come to the fore tomorrow in the form of gruesome and naked bloodshed and human civilization will die forever. Without changing that situation, there is no other option. If the new world cannot be created, then this growing suffocation will suffocate humanity.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...