प्राकृतिक संरक्षण
प्राकृतिक के संरक्षण के साथ जुड़े इको टूरिज्म का चलन बढ़ा है। वृक्षों के सुनियजित रोपण के साथ समृद्ध हो रही प्रकृति के आँचल में ऐसे पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है। अपने प्रशांतक स्वभाव के कारण वृक्ष तनाव को भी कम करने में बहुत सहायक होते हैं। इस तरह मानसिक स्वास्थ्य में इनके योगदान को समझा जा सकता है। आध्यात्मिक रूप में वृक्ष मनुष्य जाति के शिक्षक हैं। बिना कुछ आशा-अपेक्षा के सिर्फ देने का भाव जहाँ इनका स्वभाव है, वहीं फलों से लदने पर इनका झुक जाना मानव को गुणवान बनने व विनम्र रहने की मौन प्रेरणा देता है। वृक्ष कार्बन-डाइऑक्साइड से लेकर अन्य प्रदूषण को अवशोषित कर चारो ओर प्राणदायी वायु के विसर्जन का उदार एवं तपस्वी शिवस्वरूप जीवन सबको एक मूक शिक्षण देता है।
The trend of eco-tourism associated with the conservation of nature has increased. With the systematic planting of trees, such tourism is being promoted in the lap of nature, which is flourishing. Trees are also very helpful in reducing stress due to their calming nature. In this way their contribution to mental health can be understood. In spiritual terms, trees are the teachers of mankind. Where it is their nature to simply give without any hope and expectation, while bowing down when loaded with fruits gives a silent inspiration to human beings to become virtuous and remain humble. Trees absorbing carbon-dioxide to other pollution and dispersing life-giving air all around, life in the form of a generous and ascetic Shiva gives a silent teaching to everyone.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...