प्रकृति का नियम
सूर्य की रौशनी कभी कम हुई, न फूलों की खुशबू, न वृक्षों के फल कम हुए और न ही नदियों का मीठा जल। सूर्य समुद्र का जल सोखता है, तो उसी जल से पुनः पृथ्वी को तर भी कर देता है, तृप्त भी कर देता है। एक से लेकर दूसरे को और दूसरे से लेकर पहले को देना ही सृष्टि का काम है। प्रकृति का यह शाश्वत नियम है कि हम प्रकृति को जो कुछ भी देते हैं, उसे वह कई गुना अधिक करके वापस दे देती है। खेत में हम एक बीज बोते हैं और उसके हजारों बीज बनाकर हमें प्रकृति वापस कर देती है।
The light of the sun never diminished, neither the fragrance of flowers, nor the fruits of trees diminished, nor the sweet water of rivers. The sun absorbs the water of the sea, then again with the same water, it also saturates the earth, it also satisfies it, it also satisfies it. The task of creation is to give from one to the other and from the second to the first. It is the eternal law of nature that whatever we give to nature, it gives back manifold. We sow a seed in the field and after producing thousands of seeds, nature gives it back to us.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...