वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं।
किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला अवश्य होता है। फिर उससे वायु और वृष्टिजल की शुद्धि होने से जगत का बड़ा उपकार और सुख अवश्य होता है। इस कारण से यज्ञ को करना चाहिए। पुनः इस शंका का निवारण करते हुए कि अतर और पुष्प आदि घरों में रखने से भी वायु और जल की शुद्धि की जा सकती है, महर्षि कहते हैं कि यह कार्य अन्य किसी प्रकार से सिद्ध नहीं हो सकता है, क्योंकि अतर और पुष्पादि का सुगन्ध तो उसी दुर्गन्ध युक्त वायु में मिलके रहता है, उस को छेदन करके बाहर नहीं निकाल सकता और न वह ऊपर चढ सकता है, क्योंकि उसमें हलकापन नहीं होता है। उसके उसी अवकाश में रहने से बाहर का शुद्ध वायु उस स्थान पर जा भी नहीं सकता। क्योंकि खाली जगह के बिना दूसरे का प्रवेश नहीं हो सकता है। फिर सुगन्ध और दुर्गन्ध वायु के वहीं रहने से रोगनाशादि फल भी नहीं होते हैं। महर्षि ने वेद मंत्रों का भाष्य करते समय कई स्थलों पर यज्ञ करने के लाभों का उल्लेख किया है।
Maharishi Dayanand Saraswati, the reviver of the Vedas, says in the Rigveda Dibhasya Bhumika, under the chapter titled Veda Vishaya Vichar, that the molecules of the liquid containing fragrance etc. are thrown into the fire and remain separated in the sky. There is actually no shortage of any substance. Due to this, the liquid definitely cures the problems like bad smell etc. Then, the purification of air and rain water through it definitely brings great benefit and happiness to the world. For this reason Yagya should be performed.
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