कर्मों का भोग
मनुष्य विषय-भोग, पेट-प्रजनन आदि चीजों से ऊपर उठें की बातें उसके मस्तिष्क में आएँगी ही नहीं; क्योंकि उसके सोच की एक सीमा है, जिससे बाहर वह जा ही नहीं सकता और इस प्रकार वह पशु, पक्षी आदि निम्न योनियों में बार-बार जन्मता हुआ, मरता हुआ अपने कर्मों का भोग ही करता रहता है और विभिन्न योनियों में रहते हुए जब जीव के कर्मों का भोग पूरा हो जाता है, तब आखिरकार जीव को मनुष्य शरीर मिलता है।
Man should rise above things like pleasures, stomach-procreation, etc. The things that will never come to his mind; Because there is a limit to his thinking, beyond which he cannot go and thus he is born again and again in the following species like animals, birds etc. The enjoyment of one's karma is completed, then finally the soul gets a human body.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...