विनाश एवं विलोपन
कब वर्षा होगी और कहाँ होगी, कब बाढ़ आ जाएगी और कितनी तबाही होगी; कहा नहीं जा सकता है। एक ओर बाढ़ से तबाही का मंजर है तो दूसरी ओर सूखे का विकराल प्रकोप हमें चैन लेने नहीं दे रहा है। प्रकृति के जीव-जंतुओं के व्यापक विनाश एवं विलोपन से सर्वत्र असंतुलन का वातावरण विनिर्मित हो गया है। उससे भी ओर कोहराम मचा हुआ है और इसके जिम्मेदार केवल हम हैं। हमारे ही कारण प्रकृति का संगीत शोरगुल में बदला है। हमारी वजह से जल, जमीन, आकाश एवं वायु प्रदूषित हुए हैं।
When and where will it rain, when will there be a flood and how much destruction will there be; cannot be said. On one hand there is a scene of devastation due to flood and on the other hand the severe outbreak of drought is not allowing us to take rest. Due to the widespread destruction and extinction of the animals and animals of nature, an atmosphere of imbalance has been created everywhere. There is more chaos than that and only we are responsible for this. It is because of us that the music of nature has turned into noise. Water, land, sky and air have been polluted because of us.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...