प्रगति का आधार
भौतिक प्रगति से लेकर आंतरिक उत्कर्ष में शक्ति संरक्षण का महत्व किसी से छिपा नहीं है। जीवन के किसी भी आयाम में उत्थान के पथ पर चलना हो, बढ़ना हो, सफल होना हो तो आवश्यकता शक्ति-सामर्थ्य-पुरुषार्थ की होती है। यह संसार-शक्ति या ऊर्जा की भाषा को समझता है। वैसे भी संसार को शास्त्र 'संसरति इति संसारः' के नाम से परिभाषित करते हैं, जिसका अभिप्राय गतिशीलता, क्रियाशीलता या प्रवाह से है। जो आगे बढ़ रहा है, निरंतर बदल रहा है, निरंतर क्रियाशीतला है - वह संसार के नाम से पुकारा गया है। जिसका आधार ही गतिशीलता हो, वह बिना ऊर्जा या शक्ति के गति को कैसे पाएगा ? इसीलिए संसार के हर आयाम में प्रगति का आधार, शक्ति को माना गया है।
The importance of conservation of energy from material progress to inner flourishing is not hidden from anyone. In any dimension of life, if you want to walk on the path of upliftment, to grow, to be successful, then there is a need of power-strength-purusharth. It understands the language of samsara-shakti or energy. Anyway, the scriptures define the world by the name 'sansarati iti sansarah', which means movement, activity or flow. One who is moving forward, constantly changing, constantly active – he is called by the name of the world. How can one whose basis is mobility, without energy or power, how will he be able to move? That is why power has been considered as the basis of progress in every dimension of the world.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...