श्रम का संतुलन
श्रम का संतुलन जरूरी है। श्रम में शारीरिक के साथ मानसिक श्रम को, शारीरिक तत्परता के साथ मनोयोग को भी जोड़कर रखना चाहिए। इनके संतुलन से ही श्रम का संतुलन बनता है। शारीरिक श्रम करने वाले बहुधा मानसिक श्रम से बचते हैं, इसलिए उन्हें मुर्ख, गँवार जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता है। पढ़े-लिखे लोग शारीरिक श्रम के अभाव में दुर्बल, रोगी जैसी स्थिति में रहते हैं। बौद्धिक क्षमता के अभाव में श्रमिक खेत में उन्नत फसल तथा फैक्टरियों में श्रेष्ठ उत्पादन करने में सफल नहीं होते। इसलिए उन्हें मानसिक विकास के अवसर दिए जाने चाहिए। इसी प्रकार मानसिक श्रम करने वालों को संकल्पपूर्वक शारीरिक श्रम के कार्यों को भी अपनाना चाहिए।
A balance of labor is essential. In labor, physical as well as mental labor should be combined with physical readiness. The balance of labor is formed only by their balance. Those who do physical labor often avoid mental labor, so they are addressed with words like fool, idiot. Educated people live in weak, sick condition due to lack of physical labor. In the absence of intellectual ability, workers are not successful in producing improved crops in the field and the best production in factories. Therefore, they should be given opportunities for mental development. Similarly, those who do mental labor should adopt the work of physical labor with determination.
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वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वेद विषय विचार नामक अध्याय के अन्तर्गत कहते हैं कि सुगन्ध आदि से युक्त जो द्रव्य अग्नि में डाला जाता है, उसके अणु अलग-अलग होके आकाश में रहते हैं। किसी द्रव्य का वस्तुतः अभाव नहीं होता। इससे वह द्रव्य दुर्गन्धादि दोषों का निवारण करने वाला...